रविवार, 27 अक्तूबर 2013

तंत्र पर खुली चर्चा ग्रुप का गठन

अच्छी चर्चा चल पड़ी है।
अभी कुछ ही दिनों पहले तंत्र पर खुली चर्चा ग्रुप का गठन हुआ। अच्छी चर्चा चल पड़ी है। अगर आप भी योग, तंत्र, अनुष्ठान, कर्मकांड, समाज व्यवस्था, धर्म शास्त्र जैसे विषयों में रुचि रखते हों और ग्रुप के नियम से सहमत हों तो आपका स्वागत है।
नियम-
1 विभिन्न अनुभवों, साधना पद्धतियों, सामाजिक जीवन शैलियों को जानने-समझने की इच्छा ।
2 मतभिन्नता को सहने की क्षमता, अपनी खुली पहचान के साथ। अनुभव का सम्मान।
3 दूसरे पर निराधार या केवल अपनी मान्यता के आधार पर नीच, दुष्ट, पतित कहने से परहेज।
4 सोदाहरण, सप्रसंग, प्रश्न, आलोचना तथा अनुभव रखने की खुली छूट।
धर्म, संप्रदाय, आस्तिकता, नास्तिकता का कोई बंधन नहीं।

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

तंत्र जब विशाल है ही तो हम क्या करें?

मैं ने आ. मिश्रजी का पेज देखा। वहां उदारता बहुत अधिक है। अनेक प्रकार की बातें और वे भी प्रचलित भक्तिमार्गी साधुशाही मूडवाली हैं। उसका रस अलग है।
मैं ने आज श्री जमुना मिश्रजी का पोस्ट भी पढ़ा। मुझे लगा कि मेरी बात इन तक पहुंची है। चर्चा स्पष्ट शब्दों में ही नहीं स्पष्ट अर्थों में होगी तभी समझ में आयेगी नहीं तो फिर हर बात को बस केवल मानने मनवाने का झंझट शुरू हो जायेगा। तंत्र जब विशाल है ही तो हम क्या करें? हम कौन होते हैं उसे छोटा करने वाले? इसलिये जरूरी है कि एक एक बात या उदाहरण या वर्गीकरण को ले कर आपसी अनुभवों एवं समझ से लाभान्वित हुआ जाय। भाव यह रहे कि हम परस्पर के लिये कर रहे हैं। जिन्होंने जप, ध्यान, हठयोग आदि में से जिस किसी का अभ्यास किया हो साधक उदारता रखे तो दूसरे की बात भी समझने लगता है।
मैं अनेक प्रयोगवादियों के सान्निध्य में रहा हूं। इस अनुभव से कहता हूं ऐसा साधक जो धारणा या प्रत्याहार के अनुभव से ऊपर गया है, वह आसानी से साधना पद्धतियों की विविधताओं को ही नहीं, उनके बीच के अंतर को भी समझने लगता है।
मुझे लगता है कि लोग केवल किताबें पढ़कर, वे भी परीक्षा में झटपट निश्चित सफलता टाइप, तुरत अपने को ज्ञानी मान लेते हैं। आवृत्ति को जप, धारणा को ध्यान, इसी प्रकार प्रतीक को सर्वस्व मान लेने की चलन ने इतनी समस्याएं पैदा की हैं कि इन उलझनों के विरुद्ध बोलने पर लोग आहत हो जाते हैं। उनका मानना इतना कठोर कि जानना नास्तिकता का सूचक हो जाता है।
भारत में दोनों प्रकार के सत्संग,चर्चा शास्त्रार्थ होते रहे हैं, दूसरे को समझने जानने के लिये  और अपनी या अपने गुरु के वर्चस्व को दूसरे पर लादने के लिये। इसी मानसिकता से वैष्णवों का एक संप्रदाय अपने को ‘‘प्रतिवादी भयंकर’’ कहता है। भयंकर से कौन बात करे? और इन भयंकरों से मिलना क्या है?

‘‘तंत्र पर खुली चर्चा’’ की तकनीकी एवं अन्य उलझनें

‘‘तंत्र पर खुली चर्चा’’ की तकनीकी एवं अन्य उलझनें
1 ‘तंत्र पर खुली चर्चा’’ में रुचि लेने वाले लोगों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि वे इंटरनेट पर फेसबुक की तकनीकी समस्याओं, जैसे किसी के कंप्यूटर पर खुलना , न खुलना, अलग अलग जगहों पर अलग अलग टिप्पणियों  का बिखर जाना, आदि समस्याओं का या तो समाधान बतायें या सीधे ब्लाग पर ही आकर अपना विचार रखें। यदि इसमें किसी को कोई दुविधा हो या यहां भी कोई रहस्य हो, जिसे मैं समझ नहीं पा रहा तो कृपया अपने खुलेपन के साथ सहानुभूतिपूर्वक बतायें कि मैं समझ सकूं।
2 फेसबुक पर ‘‘तंत्र पर खुली चर्चा’’ विषयक जो भी चर्चा चली, टिप्पणियां आईं उन्हे मैं ने तंत्र परिचय ब्लाग ेंके एक स्वतंत्र पृष्ठ ..... पर संकलित करके डाल दिया है। वहां पर सबकी बातें एक साथ देखी-पढ़ी जा सकेंगी। जो भी व्यक्ति अपनी किसी बात को पूर्णतः निजी एवं गुप्त रखना चाहते हों, वे या तो प्रगट ही न करें या व्यक्तिगत मेल से चर्चा करें- मेरा मेल आइ.डी है-
3 तंत्र सबसे पहले मर्यादा की शर्त रखता है। समूह में होनेवाली चर्चा में उतनी उत्सुकता नहीं होती। शाबर मंत्र के अंदरूनी रहस्य क्या कोई बच्चा-बच्ची समझेगी? यह 18 साल में बालिग होने वाली कानूनी प्रौढ़ता से क्या हम सहमत हैं?
4 आप लोग कैसे सवाल पूछेंगे, विचार व्यक्त करेंगे? अगर प्रश्न और विचार ही कुंठित रह गये तो चर्चा कैसे होगी? मेरा एक सुझाव है- यह चर्चा चूंकि केवल और केवल तथ्य परक होनी है अतः रोचकता, साहित्यिकता, वर्णन में सरसता सौंदर्य आदि की अपेक्षा न करें। विषय वस्तु ही ऐसा है कि सीधे स्पष्ट वर्णन के बाद भी रहस्य, रोमांच तथा अंत में अगाध शांति तथा तृप्ति देनेवाला होगा।
5 कोई खुले न खुले मुझसे लच्छेदार शास्त्रीय संदर्भों से भरी पूरी जटिल अभिव्यक्ति की आशा न रखें। मेरा प्रयास होग कि एक अनपढ़ को भी जब ये बातें बताई जायें तो वह समझ ले। आप लोग तो पढ़े लिखे  हैं। नये जमाने के छोटे बच्चों को ऐसी बातों में रुचि ही नहीं होती। आगे से मैं भी अरोचक और सीधी सरल शैली में ही गंभीर तथा महत्त्वपूर्ण बातों को लिखूंगा। सरलता गोपनीयता का सरल उपाय है।

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

भोजपुरी का शाबर मंत्र



जब तक तंत्र पर विधिवत चर्चा शुरू नहीं होती मैं भोजपुरी का एक शाबर मंत्र अधूरे रूप में यहां रख रहा हूं। पूरा मंत्र ब्लाग पर मिलेगा। इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं हैं। यह स्वयं सिद्ध है। जरा आप अपनी समझने की आदत को बदल कर समझने का प्रयास करें। यह मंत्र बिना पूरे अनुष्ठान को जाने शायद समझ में न आये। इसका प्रयोग घर की बड़ी-बूढ़ी औरतें  झल्लाये बच्चे को शांत करने के लिये करती रही हैं। आधुनिक शिक्षा वाली पीढ़ी को यह ऊटपटांग लगता है। इसलिये यह प्रयोग लुप्त हो रहा है-। इस अनुष्ठान में एक दीपक, घर में चूल्हा लीपने वाला पोतन मूल अवश्यक सामग्री होती है। उसमें भी मूलतः दीपक। घर की बुजुर्ग महिला रोता हुआ बच्चा और उसे गोद में संभालने वाली औरत। मंत्र है- ‘‘आको माई चाको, कुलदीप माई माको। जिन मोरा बबुआ के नजरी लगइहें, बियाये के बियइहें, बेंगुची बियइहें, डाल दीहें पानी में छपकत जइहें।’’
मैं ने कई महिलाओं को खाश कर अपनी परदादी को इसका सफल प्रयोग करते हुए देखा है।

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

योग-तंत्र मित्र मंडल

मित्रो एक समय था जब हठयोग की सामान्य बातों को भी ईश्वरीय चमत्कार की तरह कहा जाता था और झूठा प्रचार होता था कि योगी अपनी आंत को बाहर निकाल कर धोता है। दरसल योगी के पास गेरू रंग की लंगोट होती थी । ऐसे ही वस़्त्र से वह पेट साफ करने की धौती क्रिया करता था, जिसमें पहले कपड़े को निगला जाता है फिर उसे बाहर निकाला जाता है। नदी में ऐसा करता देख लोगों को लगता था कि योगी अपनी आंत को ही निकाल कर धो रहा है। लार से लिपटी लंगोट आंत की तरह दीखती है।

साधना की अनेक धाराएं हैं। ईमानदार आस्तिक और ईमानदार नास्तिक कोई भी योग या तंत्र का अभ्यास कर सकता हैं बात में जब सच्चाई हो तो नास्तिकता से डर कैसा? अनेक धाराएं हैं, केवल अतिवादी वाम मार्ग ही थोड़े है। आज तो संकल्प करना ही नहीं जानते। इसे जान लेने से भला किसका क्या बुरा होगा? संध्या, गायत्री केवल पाठ मात्र हो कर सिमट गई, इसे प्रायोगिक रूप से जानने से कौन अनिष्ट हो जायेगा? नहीं खोलेंगे तो अगली पीढ़ी कामसूत्र को ही तंत्र शास्त्र की सबसे उत्तम पुस्तक समझेगी। अपनी चेतना के ऊर्ध्वारोहण की कोई कल्पना ही नहीं करेगा।

मेरी समझ से ओशो ने कुछ भी नहीं खोला, न करपात्री जी ने। घेरंड संहिता के एक श्लोक को तो इन्होंने खोला ही नहीं और झूठमूठ का बवाल कराया।

मैं किसी की परंपरा का अनादर नहीं करता साथ ही यह भी ध्यान दिलाता हूं कि अनेक मार्ग हैं। मैं ने अपने गुरुजी से इजाजत ले कर विभिन्न लोगों के साथ सत्संग किया और तब पता चला कि समानता और अंतर क्या है। अभी गुजरात भी एक विरक्त साधक को सहयोग करने ही गया था। मैं आप सबों का बहुत आदर करता हूं। आपकी बात काटने का मन नहीं हैं फिर भी आपका ध्यान आकृष्ट करना जरूरी है कि जैसे पहले सामान्य आसन-प्राणायाम को भी रहस्यमय एवं गुप्त बताया जाता था। इसका बुरा परिणाम यह हुआ कि इन सामान्य बातों को भी लोग असंभव मानने लगे थे। स्वामी शिवानंद जी, स्वामी कैवल्यानंद जी आदि ने स्वयं तथा अपने शिष्यों के माध्यम से बेमतलबी गोपनीयता के आवरण से इसे ऊपर निकाला। योग जोग एवं टोटका नहीं रहा।
उसी तरह कुछ लोगों को जिन्हें जितना प्रायोगिक ज्ञान है उतना तो सही साफ सुथरे स्पष्ट ढंग से बिना सांप्रदायिक ब्रांडिग के सरल ढंग से कहना ही चाहिये। मैं ने यह हिम्मत जुटाई है। जिसे मर्जी पढ़े, लाभ उठाये या फिर दुकानों की चक्कर लगाये। कोई सीखना चाहेगा तो उसी सरलता से सिखाऊंगा भी। बिना जाने-समझे अगर भ्रम फैलाना पुण्य है तो मैं इससे उलट अनुभव आधारित बात कहने का प्रयास करूंगा।

मैं अपने अनुभव, शास्त्रीय वचन और व्याख्या इन तीनों को मिलाता नहीं हूं। जो अनुभूत और पक्का है, वह तो है ही। मैं भी एक सामान्य मनुष्य ही हूं, मुझे अनुभव हो सकता है तो दूसरों को भी अनुभव हो सकता हैं। जो प्रयास ही नहीं करेंगे, उन्हें भला अनुभव कैसे होगा?

अभी हाल यह है कि यूरोपियों के अनेक ऐसे समूह हैं जो योग एवं तंत्र की क्रियाओं तथा निजी अनुभवात्मक बातों को आपस में बांटते हैं किंतु पता नहीं भारतीयों और हिंदी भाषी लोगों को इतना डर क्यों लगता है?
जो योग एवं तंत्र की क्रियाओं को अनुभवात्मक रूप से नहीं जानते वे ज्यादा ही लिखते-बोलते हैं। जो थोड़ा बहुत जानते हैं उन्होंने भी बड़ी पगड़ी बांध रखी है, इसलिये उन्हें डर लगता है कि कहीं भेद न खुल जाये। मैं जितना जानता हूं उतने का ही दावा करता हूं । न भेद है, न खुलेगा। हमारी मंडली में अनेक योग-तंत्र के गृहस्थ अभ्यासी साधक हैं। सबके पास अपने-अपने स्तर का अनुभव है। सबके गुरु एक ही हों यह भी जरूरी नहीं है। कहने को खुला मंच और केवल अपने ही गुरु की दुकान यह चलता नहीं है। तुरत लोग उदास हो जाते हैं।
केवल कॉपी पेस्ट से अलग एक ऐसा ग्रुप होना चाहिये जहां प्रयोग करने वाले अपना अनुभव और प्रश्न बिना हिचक रख सकें और अगर किसी के पास सुझाव या अनुभव है तो वह सहयोग करे। यदि आपकी जानकारी में ऐसा ग्रुप हो तो बहुत अच्छा अन्यथा लगता है कि अब मुझे ही ऐसा एक ग्रुप बनाना पड़ेगा, भले ही उसमें संख्या कम हो। यह एक प्रयोग ही सही। कुछ लोग फिर से इसे सायंस की कठिन पदावली में डाल कर इसे बिकाऊ और दुर्लभ बनाना चाहते हैं।

कुछ लोगों को जिन्हें जानकारी है उन्हें आगे आना होगा। सच बातें जब सामने आयेंगी तभी तो सच्चाई के प्रति जिज्ञासा या आकर्षण होगा? अभी जो जैसी उलटी सीधी बातें लोग सुनते हैं, वैसा विश्वास करते हैं। यह ग्रुप केवल वास्तविक अभ्यासियों के लिये होगा। कॉपी पेस्ट के लिये नही।

आपको अनुचित लगता है तो न करें, यह आपकी मर्यादा है। मुझे तंत्र को उसके वास्तविक रूप में ही कहना रखना है किसी सीमित अर्थ में नहीं चाहे वह वामाचार हो या चीनाचार। तंत्र केवल अभिचार की विद्या थोड़े ही है। इसके उदात्त पक्ष से वस्तुतः किसी को कोई हानि क्यों होने लगे? जो अभिचार करें वो उसका परिणाम भोगें।