नवरात्रि उपहार -5 : शारदीय नवरात्रि में सौंदर्य बोध को पारिवारिक बनाने की साधना
सुंदरता किसे नहीं पसंद आती? अपनी खूबसूरती और दूसरों की भी, बशर्ते वह व्यक्ति बहुत अधिक ईर्ष्यालू न हो। शाक्त साधना और शारदीय नवरात्रि में बरसात के बाद आई प्राकृतिक सुंदरता का रस तो है ही साथ ही स्वयं, सजने धजने एवं परिवेश को भी सजा-धजा कर मस्ती मनाने की दृष्टि है। यह अवसर रचना हेतु तप का कम प्रकुति की खूबसूरती में सक््िरय रूप से लीन होने का है क्योंकि इस ऋतु परिवर्तन में प्रकृति में तमोगुण बढ़ने वाला है, गर्मी या रजोगुण नहीं। इसलिये अभ्यास भी सक्रियता बढ़ाने वालो किये जाते हैं। बंगाल से गुजरात तक और कन्या कुमारी से वैष्णो देवी तक शक्ति आराधना चल रही है।
इस आराधना से तब तक आपको लाभ नहीं मिलने वाला बल्कि हानि भी हो सकती है, जब जक आप अपने सौंदर्य बोध को उदार और पारिवारिक नहीं बनाते। हम साधना की यांत्रिकता को इतना महत्त्व दे देते हैं कि कई बार उसकी मूल व्यवस्था से ही ध्यान हट जाता है। इसलिये सुंदरता और विपरीत लगने वाली स्थिति तथा व्यक्ति में भी सुंदरता ढूढने एवं उसका लाभ उठाने की साधना एक बार आजमा कर देखिये।
इसके लिये केवल युवा या बच्चों में ही नहीं उम्रदराज लोगों में भी खूबसूरती ढूंढ़ने का प्रशिक्षण स्वयं अपने को दें। यह क्या कि केवल जवान ही सुंदर रहेंगे? बूढ़े क्यों नहीं? मैं ने कुछ उम्रदराज लोगों को भी बहुत खूबसूरती के साथ चिता में जलते देखा है। दूसरे के मरने पर मिठाई खाने के हम अभ्यस्त हैं ही तो उनकी खूबसूरती को मानने में क्या हिचक? इसके लिये टीवी स्क्रीन और पास पड़ोस के उम्रदराज लोगों की खूबसूरती को न केवल स्वीकार करें बल्कि खुल कर प्रशंसा करें। इनकी प्रशंसा में खतरा भी बहुत कम रहता है। फिर धीरे-धीरे आपका सौंदर्यबोध विराट होता जायेगा। रंगभेद को खूबसूरती में बाधक न बनने दें अन्यथा पूरे विश्व में व्याप्त खूबसूरती के बहुत बड़े हिस्से के रस का सुख स्वतः छूट जायेगा। काली, नीलतारा की उपासना आपका क्या खाक करेंगे? जब समाज अपने सौंदर्यबोध को सीमित करता है तो ईर्ष्या को बढ़ावा देता है। इसके परिणाम स्वरूप घर में प्रौढ़ लोग अपनी ही अगली पीढ़ी से जलने लगते हैं खाश कर उन घरों में जहां प्रौढ़ और बुजुर्गों की संुदरता की कद्र नहीं। तब सास श्रेणीवाली औरतें जेवरों और पुरानी दुल्हन वाली बनारसी साडि़यों से लदने लगती हैं और सुसर श्रेणीवाले बालों में खिजाब लगा कर चडढी-बनियान पहनने के कंपीटीसन में आने लगते हैं और कपडों संभलते नहीं, बरबस सरक जाते हैं। इस बेवसी से जो झलकता है, वह उसमें शायद ही खूबसूरती रहती है। अतः नैसर्गिक स्थिति में ही सुंदरता खोजी जाय। चेहरे पर पड़ी झुर्रियों की अपनी सुंदरता है, उसे मेकअप से क्यों ढका जाय?
थोड़ी देर के लिये अति नैतिकवादी दृष्टि से गंदा लगने वाले एक काम का उदाहरण लें कि अनेक बूढ़े-बूढि़यां किसी एकांत में अपने बीच बहुत सारे गड़बड़ झाले कर रहे हों, चाहे वह गाली-गलौज, डांस-रोमांस हो या, जाम लड़ाने वगैरह का। अगर रोज ऐसे भौतिकतावादी नास्तिक अपने आप में ही लगे रहें, तो सोचिये कि कम उम्रवालों लोगों की सुरक्षा का संकट इससे बढ़ेगा कि घटेगा? कम उम्रवालों को ही केवल खूबसूरत मानियेगा तो आक्रमण किस पर होगा?
अपनी सुंदरता के साथ अपने सौंदर्य बोध को बढ़ाने के अभ्यास से आप उम्र बढ़ने के साथ अपने में परिवर्तन करते हुए ताउम्र मस्त रह सकते हैं। केवल बालों में खिजाब लगा कर या यौनवर्धक दवाइयां खाकर बेकार दुविधा और तनाव में रहने से क्या फायदा? जी हां, कुछ साल पहले मैं भी 50 पार कर गया। मेरी पत्नी का भी वही हाल है। अब अगर फिर से हम अपने लिये पति-पत्नी ढूंढने का काम शुरू करें तो आप समझ लीजिये कि क्या संकट होगा? इसलिये हम आजकल खूबसूरत समधी-समधन के जुगाड़ में हैं। मेरे यहां सीघे तौर पर एक की वैकेंन्सी है। कोई न कोई प्रत्यक्ष-परोक्ष रिश्ता जोड़ कर अनंत खूबसूरत लोगों का आमंत्रण है। गोरा-काला, गेहुंआ मिल्की विल्की सब चलेगा। दांत टूटा हो सकता है लेकिन मरम्मत किया होना जरूरी है। मिठाई खाने में बेपरहेज को ऊच्च प्राथमिकता। मैं तो मिठाई खाते हुए और संगीत सुनते हुए खूबसूरती के साथ मरने के जुगाड़ में हूं। इसकी तैयारी करनी पड़ेगी। विफलता या विघ्न के डर से भागने से काम नहीं चलेगा।