मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

शिवरात्रि पर प्रस्ताव


केवल पराक्रमी लोगों के लिये
पारंपरिक विद्या शिक्षण-प्रशिक्षण के दो तरीके होते हैं। अपने और पराक्रमी लोगों के लिये अलग और दूसरे तथा कमजोर लोगों के लिये अलग। पहली पद्धति से ही उत्कृष्ट कोटि की शिक्षा हो पाती है और यह सामान्य से बिलकुल अलग होती है।

सौभाग्य से मुझे दोनों प्रकार की शिक्षा मिली। मगध बहुत पहले से पहली प्रकार की शिक्षा में अग्रणी रहा, फलतः वह सदैव ईर्ष्या का पात्र भी रहा। मैं ने बहुत विचार के बाद यह तय किया कि 100 निठल्ले शिष्यों की जगह 10 पराक्रमी शिष्य बनाया जाय ताकि अगली पीढ़ी तक मेरी पूरी विद्या भी पहुंचे और उसमें से कुछ मुझसे भी आगे बढ़ें।

कई प्रयोगों के बाद अब खुल कर बोलने की हिम्मत भी जुटी है। ध्यान योग और कुंडलिनी साधना में तो शिष्य लगे हुए हैं। उनकी तीव्र एवं व्यापक प्रगति से मैं संतुष्ट हूं। हठ योग एवं प्राण विद्या के क्षेत्र में अभी पद रिक्त हैं। ऐसे किसी भी व्यक्ति को जिसकी उम्र 40 साल से कम हो, वह स्वस्थ हो, उसे उदाहरण के लिये मोटे तौर पर बाबा रामदेव जी तक की दक्षता तक घर गृहस्थी या पढ़ाई-लिखाई के साथ मैं मात्र 1 वर्ष में पहुंचाने का विश्वास रखता हूं।
यह विद्या परंपरा में गुप्त रही है क्योंकि सबके वश की बात नहीं है। प्राणायाम करने की ट्रेनिंग तो खुले आम मिलती ही है, यह हुई दूसरे प्रकार की विद्या। पहले प्रकार में सीधे तन-मन को प्राण ऊर्जा के प्रवाह में डाल दिया जाता है। फिर शरीर स्वतः आसन तथा प्राणायाम करने लगता है। वह उस अधिक मात्रा तथा अवधि तक प्राणायाम करता है कि सामान्यतः आप सोच ही नहीं सकते और थकान का नामोनिशान नहीं होता। इसके साथ अनेक आसन, मुद्रा, बंध, तथा नेति, धौती आदि जटिल मानी जाने चाली क्रियाएं भी सिखाई जाती हैं। इसके बाद आगे की साधना भी सरल हो जाती है। साथ ही हठयोग प्रदीपिका, घेरंड संहिता जैसी पुस्तकों का अध्ययन भी आसानी से हो जाता है।