रविवार, 11 मई 2014

भारतीय तंत्र का विस्तार


भारत में तंत्र की विधियों को आयुर्वेद, कर्मकांड, ज्योतिष, लक्षण विद्या, वास्तु, मुक्ति मार्गी साधना, मारण मोहन आदि 6 निषिद्ध कर्म, अनेक काम्य अर्थात कामना पूर्ति वाले कर्म, नाट्य, शिल्प तथा संगीत में स्वीकार ही नहीं किया गया, इनमें अनेक तंत्र पर ही आधारित हैं।
इसके साथ समाज व्यवस्था, राजसत्ता के लिये भी लंबे समय से तंत्र का उपयोग हुआ, पहले राज तंत्र के लिये बाद में लोक तंत्र के लिये भी। पूजा, पाठ, ध्यान, धारणा, जप, होम, यज्ञ, भोजन, उत्सव सभी तंत्र की विधियां हैं। तंत्र की साधना ठीक से हो सके, इसके लिये जन्म से मृत्यु तक के अनेक संस्कार , शुद्धि, प्रायश्चित्त, दीक्षा, गुरु परंपरा अभिषेक आदि की व्यवस्था की गई। इनमें समय-समय पर संशोधन भी किये गये।
काल क्रम में कुछ विधियां लुप्त हो गईं, कुछ काल बाह्य, कुछ आंशिक परिवर्तनों के साथ आज भी चलन में हैं। कुल मिला कर तंत्र का क्षेत्र इतना विशाल है कि मेरे जैसा व्यक्ति इस विशालता का पूरा आदर करता है। इसका आशय यह नहीं कि कुछ समझा ही नहीं जा सकता या कुछ सीखा सिखाया नहीं जा सकता।
पश्चिमी जगत के लोग भी भले बुरे अर्थात धूर्त दोनों प्रकार के हैं। काम सूत्र और पोर्नो ग्राफी को तंत्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इनके विपरीत अनेक लोग विधिवत दीक्षा ले कर गुरु परंपरा से अभ्यास करते हैं। कुछ लोग अपनी परंपरा से भी अभ्यास करते हैं और कुछ लोगों ने कई परंपराओं की साधना कर लुलनात्मक विवरण भी दिया है।
तंत्र में भी सौंदर्य तथा नग्नता का चरम स्वीकार्य है लेकिन एक संयम, एक व्यवस्था और कड़ी मर्यादा के साथ चेतना के ऊर्ध्व विकास के लिये न कि केवल ऊच्छृंखलता के लिये। इस मर्यादा की ही चर्चा प्रायः नहीं होती न चेतना के ऊर्ध्व विकास के लिये किये गये प्रावधानों की। तंत्र सामर्थ्य के विकास के साथ तृप्ति को अनिवार्य मानता है। यदि कोई सही गुरु के साथ जुड़ता है तो उसकी सरल सीधी पहचान होती है कि वह अपनी परंपरा के संयम और साधना से तृप्ति का ध्यान आरंभ से ही रख रहा है या नहीं। यदि आरंभ में नियम संयम नहीं रहा तो बाद में मन को मनाना असंभव की तरह कठिन है।
कुछ लोग यह माने हैं कि तृप्ति की जगह मन उचट ही जाय तो क्या बुरा है? इसमें खतरा यह है कि मन कब फिर आकर्षित हो कर बेचैन हो जाय या अहंकारी हो जाय कहना कठिन है। तृप्त लोग प्रायः आक्रामक नहीं होते लेकिन उच्टे मन के लोग दूसरों का सुख शांति छीनने में लग जाते हैं।
अतः मैं धीरे-धीरे पहले इन बातों को रख रहा हूं, उसके बाद या संभव हुआ तो उसके  साथ ही विधियों का भी वर्णन करता जाऊंगा।