गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

नवरात्रि उपहार -6 मेरी छोटी सी स्तुति

नवरात्रि उपहार -6 मेरी छोटी सी स्तुति
हे भगवती! जैसा कि लोग कहते हैं और कहते आये हैं कि आपके बारे में पूरी तरह और ठीकठाक कहना मेरे लिये संभव नहीं है। अतः आप जैसी भी हैं, मैं अपना शिर झुकाता हूं कि क्योंकि यह अपने से बड़े और वात्सल्यपूर्ण के सामने स्वतः झुक ही जाता है।
आपके विग्रह और प्रतीकों के बारे में जानकारी बहुत कम है। अतः मैं मोटे तौर पर और सीधे ढंग से ही कुछ कह सकता हूं कि आप शक्ति हैं और मुझमें जो भी शक्ति है, वह आप हैं। एक मनुष्य होने के नाते ज्ञान मतलब सांसारिक बोध, इच्छा और उसके लिये कुछ करने की शक्ति। इतना ही नहीं इस दुनिया की चीजों में जो ताकत आती है, वह आप हैं। पता नहीं मैं क्या हूं? शायद केवल एक अस्तित्व बोध क्योंकि मेरी चेतना भी तो आप ही हैं।
आप बहुत कठोर भी हैं। शायद हमें होश में रखने के लिये। आप जड नहीं हैं, पूर्ण चेतन हैं। आपकी सांसें चलती हैं। जीवों के भीतर छोटे स्तर पर और बड़े स्तर पर इस पूरे संसार में। नियमित रूप से हर ढाई घड़ी में आप अपनी सांस बदलती हैं। जो आपके साथ अपनी सांसों का तालमेल नहीं बनाता वह आपके दंड का भागी होता है।
आपके सुंदर, असुंदर सारे रूप हैं। हमने तो आपके इस विराट रूप से ही ये सारे पैमाने लिये हैं। आपकी सबसे बड़ी कृपा की चर्चा पता नहीं लोग क्यों बहुत कम करते हैं। आपने मनुष्य को भाषा दी, अनुभूति और कल्पना को व्यक्त करने के लिये, सच कहूं तो आप भाषा के रूप में हमारे भीतर हैं। हमने ही बहुत सारे झूठे शब्द गढ़ लिये और स्वयं उलझ गये। भारत के लोगों पर तो विशेष कृपा की और मौलिक वर्णमाला दी। 
आपके ये मूल वर्ण निरर्थक नहीं हैं बल्कि अनेक अनुभूतियों, संवेदनाओं की उत्पत्ति के साथ तौर पर जुड़े हुए हैं। लोग धीरे-धीरे आपकी वर्णमाला और आपके इस ‘‘मालिनी’’ रूप को भूलते गये। बस कुछ ही लोगों को केवल यह नाम याद है। 
आपका रूप न केवल ध्वन्यात्मक हैं बल्कि वह विंदुओं, रेखाओं, वलयों, वृत्तों से भरा पूऱा है। हे प्रकृति! आपमें  इन सबमें से क्या नहीं है? फिर भी कितने अचरज की बात है कि विंदुओं, रेखाओं, वलयों, वृत्तों का अध्ययन करने वाले अपने को नास्तिक कहते हैं और आपके विराट रूप को न मानने वाले असली नास्तिक आपके सूक्ष्म रूप एवं माया की स्तुति करने वालों को ही नास्तिक कह रहे हैं। कहने को और भी कुछ है, जो फिर सांस ले कर कहूंगा। कहूंगा।

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