गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

नवरात्रि उपहार -7 मेरी छोटी सी स्तुति का अगला भाग

नवरात्रि उपहार -7 मेरी छोटी सी स्तुति का अगला भाग
हे मूल प्रकृति! महामाया! आपका रूप ज्यामितीय है, यह भारतीय परंपरा में मान्य है तो उसका वर्णन केवल ज्यामितीय ही क्यों हो? ज्यामितीय भाषा पर ही इतनी कृपा क्यों? मुझे समझ में नहीं आता कि बीज गणित और अंक गणित की स्तुति से आप प्रसन्न क्यों नहीं होगीं? क्या ये दोनों ज्यामिति को नहीं मानते? आप काल की कला हैं। आपसे कलन शुरू होता है तो आप कलन गणित से क्यों नहीं प्रसन्न होतीं?
क्षमा करें, वस्तुतः तो आपकी प्रसन्नता और कृपा तो इन्हीं भाषाओं में आपके वर्णन करने वालों पर है। इनसे भी कुछ गलतियां हो रही हैं, शायद इन्होंने भी वर्णमाला वालों की तरह झूठे शब्द गढ़ लिये हैं। हे भगवती! मुझे कलन की भाषा सिखा दें ताकि मैं आपकी स्तुति, आपके रूप का वर्णन एक ही साथ वर्णमाला, उससे बने शब्दों और वाक्यों के साथ ज्यामिति, अंक गणित और बीज गणित में भी कर सकूं।

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