गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

नवरात्रि उपहार - 8 अधिकारवादी नारियों के लिये


स्त्री द्वारा स्त्री की पूजा वाले मंत्र और स्तुतियां क्यों नहीं हैं?
दुर्गा या शक्ति के अन्य रूपों की उपासना वाले संस्कृत श्लोकों का अर्थ पूछ कर मेरी पत्नी अक्सर मुझे फंसा देती हैं। एक सीघी सी टिप्पणी कि यह तो एक पुरुष द्वारा स्त्री की स्तुति हुईं स्त्री द्वारा स्त्री की स्तुति तो नहीं हुई।  देवी की पूजा तो स्त्री भी करती है, उसे भी पूजा स्तुति का अधिकार है फिर स्त्री द्वारा स्त्री की पूजा वाले मंत्र और स्तुतियां क्यों नहीं हैं? 
मैं ने कई ब्राह्मण/ब्राह्मणेतर स्त्री पुरुष साधक-साधिकाओं से पूछा। किसी का उत्तर संतोषजनक नहीं रहा कि चैतन्य नपुंसक लिंग है, मानीय चेतना स्त्री नहीं है, वह पुरुष अर्थात नर है, स्त्री केवल पति की सहयोगी मात्र होना चाहिये, वगैरह। कई लाल कपडों वाली साधिकाओं से पूछा। गेरुआ वाली संन्यासिनें तो अपने को स्त्री संबोधन भी देना नहीं चाहतीं,  वे तो ‘‘शिवा अहम्’’ भी नहीं कहतीं, वे कहती हैं- ‘शिवोहम्’ मैं शिव हूं। बहुत मुश्किल सा हो गया उत्तर पाना। 
खैर, खोजिये तो मिलता है के सिद्धांत से मुझे मिल गया। पूरी परंपरा मिली, जो संस्कृत पढ़े मर्दों और अंग्रजी पढ़ी औरतों को शायद ही पसंद आये लेकिन इसे झुठला देना आसान नहीं है। दरसल बेईमानी साधना की स्तुतियों के स्तर पर नहीं हो कर भाषा के स्तर पर है। न केवल वैदिक संस्कृत अपितु लौकिक संस्कृत अर्थात आज जो संस्कृत प्रचलित है, उसे भी बोलने का समाज स्वीकृत अधिकार भारतीय नारियों को नहीं रहा। उनकी जिम्मेवारी बस केवल उसे समझने और पढ़ने तक की रही। संस्कृत के सारे नाटक इस बात की पुष्टि करते हैं। नारी पात्रों के संवाद प्राकृत में लिखे गये हैं।
तब फिर स्त्री द्वारा स्त्री की पूजा वाले मंत्र और स्तुतियां? जी हां, ये सारी प्राकृत और लोक भाषा में होती हैं। इसीलिये सामाजिक चलन भी है कि स्त्री द्वारा देवी की पूजा में ब्राह्मण या पुरुष की अनिवार्यता नहीं होती। मंत्र की जगह गीत गाये जाते हैं। इस बात की पुष्टि तंत्र के ग्रथ भी करते हैं। शाक्त प्रमोद में भी देवी की स्तुति करते हुए संस्कृत में प्राकृत और गद्य के बारे में कहा गया है कि देवी को प्राकृत एवं गद्य में की गई रचनाएं प्रिय हैं। ‘‘प्राकृत -गद्यरचनाप्रिया’’। इसलिये संस्कृत के पुरुषवाद से बचना हो तो प्राकृत, गद्य या किसी भी आम भाषा में ही सीधा संवाद करने का आपको हक है। बस केवल साधना में संस्कृत वर्चस्व के प्रदर्शन से आपको अपने आप को बचाना होगा। दोनों मजा नहीं मिल सकता कि मैं पुरुषों की तरह संस्कृत के मंत्र क्यों न पढूं?

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